भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में रमती कवितावां 2 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छात, तावड़ै सूं लड़ै
म्हारै सारू

छात, तूफान सूं भिड़ै
म्हारै सारू

छात, बिरखा सूं जूझै
म्हारै सारू

पण फेर ई
छात रो पाणी ऊतरै
कीं करणियैं रौ ई ऊतरै
पाणी तो।