भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में रमती कवितावां 4 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारी छात रौ-बोझ
भींतां पर कोनी
टगां पर है

साची पूछौ तो म्हारै-
पगां पर है

बरसां सूं
सिर पर चक्यां खड़यौ हूं
म्हैं छात।