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घर में सही पहचान बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

घर में सही पहचान बा
तबहीं सभत्तर मान बा

कह के नकारल बात के
कुछ आदमी के बान बा

महँगी बढ़ी सहते चलीं
सरकार के फरमान बा

कर-बोझ बढ़ते जा रहल
दब के मरत इन्सान बा

अपना खुदे नइखे समझ
समझावले आसान बा

जतना बटोरे लूट के
धनवान ऊ भगवान बा

असली छिपल जब चेहरा
मुमकिन कहाँ पहचान बा