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घर से तन्हा जो आप निकलेंगे / देवी नांगरानी

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घर से तन्हा जो आप निकलेंगे
हादसे साथ-साथ चल देंगे

हौसलों को न मेरे ललकारो
आंधियों को भी पस्त कर देंगे

हर तरफ हादसों का है जमघट
मौत के घाट कब वो उतरेंगे

उनपे पत्थर जो फेकें अपने ही
क्यों न शीशे यकीं के टूटेंगे

होगा जब साफ आइना दिल का
लोग तब ख़ुद को जान पायेंगे

जो मुकम्मल हो आशियां दिल का
फिर तो हम-ब-दर न भटकेंगे

रेत पर घर बने हैं रिश्तों के
तेज़ झोंकों से वो तो बिखरेंगे

तब कलेजा फटेगा आदम का
खून इन्सानियत का देखेंगे