घर से बाहर निकली बिटिया / नीरजा हेमेन्द्र
घर से बाहर निकली
शाम ढ़लने तक वापस नहीं आयी
माँ आशंकित...
काँप-काँप उठता हृदय
रह-रह कर अनेक शंकायें उठ रही हैं
कहीं किसी लड़के के साथ...
नहीं... नहीं...
सड़क पर कोई दुर्घटना...
नहीं... नहीं...
कहीं कोई शारीरिक उत्पीड़न...
अनेक प्रश्न... अनेक आशंकाये...
लहूलूहान हो रहा माँ का हृदय...
कहाँ जाये... कहाँ ढूँढे...
कौन बतायेगा उसे
उसकी लाडली का पता
ओस की बूँदों के समान उज्ज्वल बिटिया
बाहर की धूप में सूख तो नहीं गयी...
आशंकाओं के मध्य झूलती, तड़पती माँ
दिन भर में अनेक बार जीती-मरती है
थका-हारा पिता सायं घर आता है
बिटिया को घर में न देख
शब्दहीन हो बैठ जाता है
लकड़ी की उसी कुर्सी पर
जिस पर बैठ बचपन में खेलती थी बिटिया
कौन बतायेगा उसकी बिटिया का पता...
कहाँ है हाकिम... कहाँ है सरकार...
किससे पूछे वह अपनी बिटिया का पता...
अनेक प्रश्नों के समक्ष खड़ी है बिटिया...
खड़े है उसके माता-पिता...
कौन है अपराधी...?
अपराधी का कोई चेहरा नहीं
घर से बाहर निकली बिटिया कहाँ है...?