भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर से बाहर / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं

कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं

चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं

बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं

इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं

इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं

अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं

बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं