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घर से बाहर / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं
कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं
चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं
बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं
इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं
इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं
अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं
बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं