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घर हमारा पीर का दर हो गया / रंजना वर्मा
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घर हमारा पीर का दर हो गया
प्यास का दरिया समन्दर हो गया
बदलियाँ छायीं गगन में इस तरह
मन - परिन्दा जैसे बेपर हो गया
जल गया हर आशियाना ख्वाब का
दिल मेरा तूफ़ान का घर हो गया
पूजते जिस को रहे दिन रात हम
वो मेरी खातिर ही पत्थर हो गया
एक टुकड़ा धूप की बस चाह थी
आज सब तुम पर मुनहसर हो गया
सिर्फ तीखी मिर्च से एहसास थे
तुम मिले हर भाव शक्कर हो गया
खुशनुमा तुम ने बनायी जिंदगी
हिज्र का आलम उमर भर हो गया
लड़खड़ाते हैं कदम हर राह पर
फूल चुभते धूल कंकर हो गया
कौन जाने क्या विधाता चाहता
जो महल था आज खंडहर हो गया