भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ / 'फना' निज़ामी कानपुरी
Kavita Kosh से
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ
हर जगह मेरा जुनूँ रूसवा हुआ
ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमल को क्या हुआ
छोड़ आए आशियाँ जलता हुआ
हुस्न का चेहरा भी है उतरा हुआ
आज अपने ग़म का अंदाज़ा हुआ
पुर्सिश-ए-ग़म आप रहने दीजिए
ये तमाशा है मेरा देखा हुआ
ये इमारत तो इबादत-गाह है
इस जगह इक मै-कदा था क्या हुआ
ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है
ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ
इस तरह रह-बर ने लूटा कारवाँ
ऐ ‘फना’ रह-ज़न को भी सदमा हुआ