दुनिया की हर कविता
शुरू होती है घर से
और घर पर ही होती है खतम
ठीक जिन्दगी की तरह
जो घूमती है
घर के इर्द-गिर्द।
बरसात में टपकती छत
दीवारों का उखड़ता पलस्तर
टूटा-फूटा फर्श
बदरंग दरवाजों के बीच
गर्व से झाँकता है घर
जिन्दगी की तरफ
दुनिया की हर कविता
शुरू होती है घर से
और घर पर ही होती है खतम
ठीक जिन्दगी की तरह
जो घूमती है
घर के इर्द-गिर्द।
बरसात में टपकती छत
दीवारों का उखड़ता पलस्तर
टूटा-फूटा फर्श
बदरंग दरवाजों के बीच
गर्व से झाँकता है घर
जिन्दगी की तरफ