भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर / जलज कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
सबका जीये के ठेकाना हऽ
सबकर खजाना हऽ
आसरा हऽ, कमाई हऽ
पीढ़ी दर पीढ़ी के परछाई हऽ
आपन पहचान हऽ
ईमान हऽ, स्वाभिमान हऽ
सुन्दर जीवन के अरमान हऽ
जीवन के गीत हऽ
सपना हऽ, सुन्दर प्रीत हऽ
जनम से लेके मरन तक के सफर हऽ
अपना-आपन सपना के कसर ह
प्रेम एकर बुनियाद हऽ
बिसवास एकर खाम्हा
आचरन एकरा के बनावेला लामा
आपस के समझदारी टाटी हऽ
त्याग आ समरपन के भाव
एकर छान्ही अउरी बाती हऽ
महल अटारी घर ना हऽ
घर साधन हऽ, साधना हऽ प्रेम हऽ
पूजा हऽ, प्राथना हऽ ।