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घर / प्रताप सहगल

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उन्होंने जगह तय कर ली है
मेरे घर की बालकनी की छत का एक कोना
तय कर लिया है उन्होंने
कि वे अपने घर यहीं बनाएँगे
वे दोनों बहुत जल्दी में हैं
कि कब घर बने और
कब बसे उनका घर-संसार
कबूतर एक-एक तिनका कमाकर लाता है
कबूतरी बड़े जतन से
एक-एक तिनके को सहेज-सँभालकर
कबूतर की चोंच से लेती है
और तामीर करती है
अपना घर-संसार
पूरा दिन-यानी उनकी उम्र का
एक हिस्सा लग जाता है
उन्हें घर बनाने में।
घर बन गया है
कबूतर नाच-नाचकर रिझा रहा है
कबूतरी नखरैल होकर
इधर-उधर घूमती है
थोड़ी देर पहले
दोनों जुटे हुए थे घर तामीर करने में
घर तामीर करने की ख़़ुशी
सारा दिन खटने के बाद भी
थके नहीं वे दोनों
नाच-झूमकर प्रवेश करना चाहते हैं।
एक-दूसरे की आत्मा में
और बसाना चाहते हैं
अपना घर-संसार
कितनी बड़ी है यह दुनिया
जो सिमटकर रह जाती है
एक छोटे से घर में
उस छोटे से घर के छोटे से
घर-संसार में।