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घर / विजय किशोर मानव
Kavita Kosh से
मुस्कराते हुए जगमगाता है
सुबह एक चेहरा
और
दर्द करते माथे पर
रेंगता है एक हाथ,
सोते वक्त,
मुझे लगता है
मैं घर में हूँ।