भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर / हनुमान प्रसाद बिरकाळी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर कदैई
बजता मिंदर
जठै बसता
देई-देवता सरीखा
भाई-बंध
पुरखां री आण
आतमा-परमातमां
घर मै'कता
भेळप री सौरम सूं
अब बै घर
बणग्या मुसाण
जिण सूं निकळै
आण री अरथी
मतै ई चढ-चढ
जींवती ल्हासां
घर भभकै
राड़ री रस्सी सूं।