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घर / हनुमान प्रसाद बिरकाळी
Kavita Kosh से
घर कदैई
बजता मिंदर
जठै बसता
देई-देवता सरीखा
भाई-बंध
पुरखां री आण
आतमा-परमातमां
घर मै'कता
भेळप री सौरम सूं
अब बै घर
बणग्या मुसाण
जिण सूं निकळै
आण री अरथी
मतै ई चढ-चढ
जींवती ल्हासां
घर भभकै
राड़ री रस्सी सूं।