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घहर घहर कर उमड़ रहे घन फैल रहा चहुँ दिशि अँधियार / रंजना वर्मा

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घहर घहर कर उमड़ रहे घन फैल रहा चहुँ दिसि अंधियार ।
सेना ले कर मेघराज हैं चले मिटाने ज्यों संसार।।

देख गगन में गिरते घन को लगे नाचने मुग्ध मयूर
गूँज उठी है पल में देखो दादुर झिल्ली की झनकार।।

मोती जैसी टपकी बूँदें छू छू कर सिहराते लोग
बालक गण आनंद मनाते पड़ती देखो मृदुल फुहार।।

पल-पल बरखा तेज हो रही लगे भीगने सारे लोग
छत की छाया लगे ढूँढ़ने सही न जाती जल की धार।।

छिपे घोंसलों में जा पक्षी पशु भी भागे लेकर जान
सनन सनन सन हवा डोलती जैसे करते प्रेत पुकार।।

चमक चमक दामिनी गगन से देख रही है घर खलिहान
जैसे ढूँढ़ रही है वह थल जहाँ नहीं पानी की मार।।

कुपित हो रहे इंद्रदेव हैं फेंक रहे पल पल निज वज्र
करने चले अवनि से हैं वो जैसे सूखे का संहार।।

आनंदित हो नदियाँ उमड़ी भरतीं कूप पोखरे ताल
सूखी खेती हरी हो रही पा कर पानी की बौछार।।

मुग्ध मगन कहता किसान है बरसो बरसो काले मेघ
कुंभकार है हाथ जोड़ता दया करो अब बस करतार।।