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घहर घहर कर बादल बरसे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
घहर घहर कर बादल गरजे, झहर-झहर बरसे जल धार।
झिमिर झिमिर बुँदियाँ बरखा की, दादुर झिल्ली की झनकार॥
हुए पराजित चन्दा तारे, जाकर छिपे तम गुहा मध्य
घनन घनन दुंदुभी बजाती, चली इंद्र की सैन्य अपार॥
ठहर ठहर चमके जब बिजुरी, सिहर-सिहर रह जाये गात
झूम झूम बूँदन की लड़ियाँ, बरखा लायी अजब बहार॥
रैन अँधेरी टिप-टिप बरसे, चारो ओर घिरा अंधियार
चमक चमक बिजुरी डरवावे, पापी पपीहा करे पुकार॥
धानी साड़ी पहिने वसुधा, रही झील देखो मुस्काय
लाल रंग की ओढ़ चुनरिया, बीरबहूटी करे सिंगार॥
सनन सनन कर पवन झकोरे, थर-थर काँपे विरहन रात
बदल बदल कर करवट बीते, नयन दरश हित रहें उघार॥
गगन मगन वन मुरला नाचे, मुरली डोल रही चहुँ ओर
कुटिया कोने बुढ़िया बैठी, व्याकुल हो नभ रही निहार॥