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घाँघरो घनेरो लाँबी लटैँ लटे लाँक पर / देव

घाँघरो घनेरो लाँबी लटैँ लटे लाँक पर ,
काँकरेजी सारी खुली अधखुली टाड़ वह ।
गारी गजगोनी दिन दूनी दुति हूनी देव ,
लागत सलोनी गुरु लोगन के लाड़ वह ।
चँचल चितौन चित चुभी चितचोर वारी ,
मोरवारी बेसरि सुकेसरि की आड़ वह ।
गोरे गोरे गोलनि की हँसि हँसि बोलन की ,
कोमल कपोलनि की जी मैँ गड़ि गाड़ वह ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।