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घाँटो / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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136.

सहजै सखिया बौराइल, खसम अछत धर भाई।
अबीर घटोइया देहु बहवाइ। एकल घंटो सरधा मन लाइ॥
पाँच सलेहरि गावहु। फुल पचीसी तोरि चढ़ावहु॥
घरि घरि हरिके हजूरे। जैसे मन मगन मजूरे॥
ऐसन वरते जौ चित लैबउ। नैहरे ससुरे सुख पेबउ॥
धरनी पुनि देह दइ चहत जैहहि। जिन ना धारब सो पछितैहहि॥1॥

137.

घट मँह घटो धरहु किन बिटिया, कवन काज कोँहरा घर जाहु।
फुल लोढ़ै गैलिहु मन मति बिटिया, की फलवारि सेहु परलि भुलाय।
चहुँदिसि हेरि हेरि, झाँकल वटिया, कवनि वाट घर अवर बजाय।
भागेहिँ मिलि गैल मित मलहोरिया, जिन देल पंथ सुपंथ चढ़ाय॥
बाँव दहिन पथ परिहरि बिटिया, कृष्ण मुखे देखु अपन दुवार।
मनके भरम तजि मन मति मिलिहिँ, सूख भइल धरनी सच पाय॥2॥