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घाट-घाट जीवन मेरा हो जायेगा / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
अपनी आँख
पराया सपना
मन हो गया
हिमालय अपना
दर्द मेरा गंगा बनकर
बह जायेगा
घाट-घाट
जीवन मेरा हो जायेगा
आज बहुत सजधज कर रोये
दरपन पर अधिकार नहीं है
कल यह कहकर
भी रो लेंगे
दरपन है शृंगार नहीं है
मेरे आंसू नहीं
खरीदो जगवालों
हाट-हाट
जीवन मेरा हो जायेगा
सूर्य न हो
बदनाम इसलिए
सारी-सारी रात
जले हम
समझौते को
प्यार समझकर
सदियों तेरे साथ चले हम
अगर प्यार से
कभी तुले तुम
राम कसम!
बॉट-बॉट
जीवन मेरा हो जायेगा
सागर को स्वीकार नहीं है
एक घूँट की प्यास हमरी
जन्मी थी
गरीब अधरों ने
रही कुँआरी
मरी कुँआरी
इतनी बार तोड़कर
जोड़ो मत वरना
गाँठ-गाँठ
जीवन मेरा हो जाएगा।