भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन / कोदूराम दलित
Kavita Kosh से
घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन
सनन-सनन चले पवन लहरिया।
छाये रथ अकास-मां, चारों खूंट धुंवा साही
बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।
चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी
बससे मूसर-धार पानी छर छरिया।
भर गें खाई-खोधरा, कुंवा डोली-डांगर "औ"
टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।