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घाम घाम घूम रही / अनुराधा पाण्डेय
Kavita Kosh से
घाम घाम घूम रही, धूल-धूल चूम रही, यौवन का लिये भार, श्रमिक कुमारिका।
ऊर्ध्व कुच का उभार, पूर्ण यौवनित नार, अंग-अंग कचनार, श्रमिक कुमारिका।
श्वेद से सने है भाल, धूप झेल गाल लाल, श्रम की पर्याय नार, श्रमिक कुमारिका।
कंचन समान देह, कर्म से सतत नेह, करे है जीवन सार, श्रमिक कुमारिका।