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घाम / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
जा मेरे आंगन से घाम
गर्मी में क्या तेरा काम
नहीं हटेगा तो झाड़ू से,
तुझे बटोरुंगा मैं घाम।
नहीं हटेगा तो पानी से,
तुझको बोरुंगा मैं घाम।
कमरे में मैं बंद न हूँगा,
मुझे न भाता है आराम
जा मेरे आंगन से घाम।