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घायल खंजर / प्रेम कुमार "सागर"
Kavita Kosh से
फिर घिर चूका कुहरा घना आकाश में है
अब भी क्यूँ दुनिया रोशनी की आस में है |
रो-रो गुलिस्तां बस यही फ़रियाद करता है
गंध-ऐ-बारूद अब तक यहाँ के घास में है |
'मुर्दा है मेरे काम का’-कहा धोती-कुर्ते ने-
सत्ता की मोटी डोर अभी उस लाश में है |
मत सोच गुजरा जो अभी वो दर्द अंतिम था
'सागर' दो-चार गिरह अभी उस बांस में है |
जख्म देकर आँखों से कोई बच नहीं सकता
एक घायल खंजर अब भी मेरे पास में है |