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घायल सिपाही का गीत / नील कमल
Kavita Kosh से
जोड़ों में दर्द
बोझ से उसकी झुकी कमर
बेचैन तबीयत की
वो शायरी थी यारो,
सुर्ख़ी थी इबारत में
बातों में कुछ कसक-सी
घायल एक सिपाही की
वो डायरी थी यारो,
मासूम एक ख़्वाब के
पीछे वो चल पड़ा
कितनी अजीब उसकी
यायावरी थी यारो,
लहरें उठान पर
सहमी-सी थीं हवाएँ
और बीच समन्दर में
उसकी तरी थी यारो,
फिर तिलमिला गए
थी खोट उनके मन में
बातें ज़ुबाँ पे उसकी
लेकिन खरी थीं यारो,
था हाले वक़्त बंजर
सूखे थे होंठ उसके
फ़स्ले उम्मीद लेकिन
बिलकुल हरी थी यारो ।