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घाव-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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घाव
भरे हुए होते हैं
इसी लिए
नम रितु में
हरे होते हैं
और
कहते हैं
शरीर को
अपने
होने की
अदृश्‍य कहानी ।

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"