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घाव-६ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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घाव
देता है दर्द
छोड़ता है
अपने होने की
मधुर- मधुर
स्मृतियां
जो कभी उठती हैं
तुम्हारी तरह
रुदन करती हुई ।
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"