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घाव / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
नहीं
प्यार वह फूल नहीं
जो अपने आप उगा
मुस्कराया
और झर गया
हँसकर एक दिन को अमृत से भर गया ।
प्यार तो यह घाव है
जो गड्ढे में गिरकर मुझे मिला है
डाक्टर जिसे भरने की फ़ीस चार्ज करता है
पट्टी के नीचे जो कराहता है
यह क्या कर लिया-- दोस्त टोकते हैं
हाय, मन इसको क्यों चाहता है ?
रचनाकाल : 03 अक्तूबर 1966