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घास / जीवनानंद दास

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कच्चे नीम्बू के पत्तों की नरम मूँगिया रोशनी से
उजागर हो गई है पृथ्वी की भोर बेला ।

हरे बतावी नीम्बू-सी हरी घास चारों और उसकी गन्ध
हिरणों का झुण्ड उसे टूँग रहा है ।

मेरी भी इच्छा होती है घास की इस गन्ध को
हरे मद की तरह भर-भर पान करूँ ।

इस घास की देह को छानूँ
इस घास की आँख में अपनी आँखे मलूँ
घास की पाँखें मुझे पाले पोसें ।

मेरी भी इच्छा होती है ।

किसी छुपी हुई घास माँ की कोख से
घास के रूप में जन्म पा जाऊँ ...।