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घिरा था अक्स से अपने ही आने वाला भी / कृश्न कुमार तूर
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घिरा था अक्स से अपने ही आने वाला भी
ग़ुबार निकला मुझे आज़माने वाला भी
हर एक मौज में पानी के रू-ब-रू निकला
अजीब आदमी था डूब जाने वाला भी
किसी चराग़ की लौ -सा यहाँ लरज़ता है
बस इक गुमाँ है हर इक आने-जाने वाला भी
अजब तरह के तमाशे का सामना था उसे
तही निगाह था दुनिया को पाने वाला भी
हुआ है दूर जो अब मेरी दसतरस से ‘तूर’
कभी वही था मेरा पास आने वाला भी