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घिरा हुआ योद्धा / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
मैं एक लाचार मनुष्य
मेरा साहस और जीवट नहीं
बल्कि एक सीमारेखा
परिभाषित करती है मुझे
कि मैं देशभक्त हूँ या घुसपैठिया
गद्दार हूँ या शहीद।
एक सीमारेखा
जिसके दोनों ओर
हथियारों की दलाली के नगमे
बजते रहते हैं अविराम
और इन नगमाकारों को
सलामी बजाते रहने से
सुनते हैं के
एक राष्ट्र
सुरक्षित रहता है
अनंतकाल तक।