घीव के लोदा कउआ खाई / मनोज भावुक
सब कुछ भूलल बिसरल बाकिर
भूलल ना अभियो लड़िकाईं,
आजो आवे याद ऊ बतिया
बचपन में जे कहलस माई-
' काचर-कुचर कउआ खाई
घीव के लोदा बबुआ खाई। '
इस्कूली में नाँव लिखाइल
मास्टर जी कहनी कविताई-
' जहाँ ऊंचाई, उहवें खाई,
सम्हल-सम्हल के चलिहs भाई।
पीठ देखइबs सूरज के तs
तू पीछे, आगे परछाई।
ढाँप-तोप के राख सकी ना
केहू आँतर में सच्चाई।
मुँह के ताला टुटिये जाई
साँच बात मुँह पर आ जाई।
एह से बाबू रहिहs साँच
इज्जत पर ना आई आँच
इजते सबसे बड़का पाई
धन-दउलत त आई-जाई। '
जाने अइसन केतना बात,
मास्टर जी दिहनी सौगात।
बाकिर हाय कुठाराघात
भोला मन पर केतना घात।
जइसे-जइसे बड़ हम भइनी
सब कुछ इहवां उल्टा पइनी।
झूठ, साँच के मारे लात
झूठे सगरो फरत-फुलात।
हंस उदासी लेके दुबकल,
चील-बाज सगरो मुस्कात।
उल्टा सुर आ उल्टा राग
डाल-डाल पर कागे-काग।
दास मलूका राम दुहाई
बइठल-बइठल छाल्ही खाईं।
रउरा आपन राज चलाईं।
जेकरा घर में दियरी नइखे
ऊ सोचे हम कहवाँ जाईं।
'साँच बराबर तप' ओकरे ह,
ऊहे अब ई बिरहा गाई।
साँच पूछीं त आजे हमरा
होश बा आइल, होश बा आइल।
पइसा के काया आ माया
पइसा के रंग-रूप बुझाइल।
पइसा बा त इज्जत बाटे
पइसा बा त बाटे नाँव।
पइसा ना त, कइसन इज्जत
कइसन आदर, कइसन भाव।
एही से बा सगरो घूस
कोर्ट-कचहरी सगरो मूस।
कुतर-कुतर के खाता देश
देखीं ई मनई के भेष।
मास्टर जी के बतिया झूठ
माई के भी बतिया झूठ।
माई से कहनी सच्चाई–
माई रे, अब ऊ दिन आई
काचर-कुचर बबुआ खाई
घीव के लोदा कउआ खाई।