घीव दूध में रमि रह्या व्यापक सब हीं ठौर 
दादू बकता बहुत है मथि काढै ते और 
यह मसीत यह देहरा सतगुरु दिया दिखाई 
भीतर सेवा बन्दगी बाहिर कहे जाई 
दादू देख दयाल को सकल रहा भरपूर
रोम-रोम में रमि रह्या तू जनि जाने दूर 
केते पारखि पचि मुए कीमति कही न जाई
दादू सब हैरान हैं गूँगे का गुड़ खाई
जब मन लागे राम सों तब अनत काहे को जाई
दादू पाणी लूण ज्यों ऐसे रहे समाई