घुंघट पट में कामिनी, कंचन पावे और,
फेर चाहिये और क्या, क्षण में ले चित्त चोर।
क्षण में ले चित्त चोर, बचे कोई दास संत का,
अनुगामी अनुराग प्रेम सतसंग पंथ का,
कंचन काया कामिनी माया अपरंपार,
शिवदीन त्यागीये दूर ते भजिये कृष्ण मुरार।
राम गुण गायरे
घुंघट पट में कामिनी, कंचन पावे और,
फेर चाहिये और क्या, क्षण में ले चित्त चोर।
क्षण में ले चित्त चोर, बचे कोई दास संत का,
अनुगामी अनुराग प्रेम सतसंग पंथ का,
कंचन काया कामिनी माया अपरंपार,
शिवदीन त्यागीये दूर ते भजिये कृष्ण मुरार।
राम गुण गायरे