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घुप अँधियारे में / कुमार रवींद्र

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घुप अँधियारे में
सपनों ने
लिया तुम्हारा नाम - हँसे
 
समझ गये हम
ली है तुमने अँगड़ाई सोते-सोते
हमने देखा आसमान में
तारों को आपा खोते
 
फूली कहीं
रात की रानी
और देह में गीत बसे

पूनो नहीं - अमावस है यह
फिर भी सागर उमड़ रहा
भीतर एक नेह का सोता
ऊभ-चूभ कर खूब बहा
 
हम भी लेटे रहे
सेज पर
बाँहों में ऋतुराज कसे
 
मीठी छुवन अँधेरे की है
और तुम्हारी भी, सजनी
हम दोनों के बीच बसी जो
महक हुई है और घनी
 
अंग-अंग में
बिना देह के
देवा के हैं बान धँसे