भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले
दुख भरी इस ज़िन्दगी से चल ख़ुशी को ढूँढ ले
दूर है मंज़िल भले ही और रस्ता है कठिन
ज़िंदगी के इस सफ़र में तू किसी को ढूँढ ले
मौत के दर पर खड़ी है लाख तेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी अनमोल है, तू ज़िन्दगी को ढूँढ ले
क्यों भला प्यासा खड़ा है इस समंदर के क़रीब
प्यास पल में मिट सके, ऐसी नदी को ढूँढ ले
जिसने ईमां को ही दौलत आज तक समझा यहाँ
भीड़ में खोए हुए उस आदमी को ढूँढ ले