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घुरि चलू ‘युगल गीत’ / चन्द्रमणि
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स्त्री-सजन हे ! घुरि चलू अपना गाम
पुरूष-हे सजनी ! घुरि कियै जायब गाम।
पुरूष-गामक जीवन भरल निराषा
नगरक चानी सोना
होइछ जोगार जतय भरि पेटक
छोड़ब तकरा कोना
दिन आ‘ राति बरोबरि चकमक, गाम पड़ल सुनसान। हे सजनी....
स्त्री- दैत ठेहुनिया बाल सुरूज
गामक आंगनमे आबय
मह-मह पवनक मन्द झकोरा
भोरे-भोर जगाबय
सुमनक संग हुलसित सन भमरा, दू तन एक परान। सजन हे....
पुरूष - सब रंग आजन सब रंग बाजन
सब किछु भेटै मोल
सदिखन रही हेरायल सजनी
मितवा टोलक टोल
बैरीक जान हाथमे राखू, खर्चा चाहे पान। हे सजनी....
स्त्री- मइयाँ सागरि बाबा हिमगिरी
साम-चकेबक खेल
रहि-रहि मोन पड़ैये निष्छल
संगी साथिक खेल
स्वर्ग उदास नगर के पूछय, गाम हमर सुखधाम।। सजन हे....