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घूंघट में अब न मुंह को छुपाना मेरी ग़ज़ल / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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घूंघट में अब न मुंह को छुपाना मेरी ग़ज़ल
पर्दा उठा के सामने आना मेरी ग़ज़ल।
नाज़ुक हसीन-सी है तू तीख़ी भी है बहुत
तेवर ज़रा तू अपना दिखाना मेरी ग़ज़ल।
जो लोग प्यार और वफ़ा को कहें फ़िज़ूल
इक बार उनको यार सुनना मेरी ग़ज़ल।
मज़लूम हैं गरीब हैं रोते हैं जो यहां
सुर अपना उनके साथ मिलना मेरी ग़ज़ल।
जो लोग चाहते हैं महब्बत की दौलतें
उनके लिए हैं एक ख़ज़ाना मेरी ग़ज़ल।
जज़्बात इश्क़ के कभी हालाते-ज़िन्दगी
इज़हार का है एक बहाना मेरी ग़ज़ल।
जीवन की उलझनों से परेशान हैं जो लोग
जामे-सुकून उनको पिलाना मेरी ग़ज़ल।
मेयार से न गिरना तू ऐ जाने-शायरी
बस दिन-ब-दिन निखरते ही जाना मेरी ग़ज़ल।