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घूम आओ कभी / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
चाँदनी रात में घूम आओ कभी।
राग में गीत को गुनगुनाओ कभी।
नेह के आस में बीत जाये न पन,
प्रीत की रीति को तुम निभाओ कभी।
सो रहे भूख से पथ किनारे पड़े,
भूख जाकर किसी की मिटाओ कभी।
नेक राहें अलग प्यार के भाव तुम,
बैठ मन चाँदनी से सजाओ कभी।
लोग उपहास करतें बिना बात पर,
राज मन के नहीं फिर बताओ कभी।
नित सुबह शाम हो छंद की साधना,
प्रेम को छंद जीवन बनाओ कभी।