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घृणा भी करनी पड़ी / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
कवि ने नदी से
प्रेम किया और
बहने लगा
उबड़-खाबड़ मैदानों
घाटियों के बीच
कवि ने पेड़ों से
प्रेम किया और
बदल गया
हरे-भरे जंगलों में
पहाड़ों से किया प्रेम और
सिहरता रहा छू-छू कर
उनकी चोटियाँ
कवि एक स्त्री से
प्रेम कर बैठा
और उसे अपने
इस धरती पर
होने का मतलब
समझ में आया
वह इस धरती पर
आया ही था सिर्फ़
प्रेम करने के लिए
पर उसे घृणा भी
करनी पड़ी उनसे
जो प्रेम के ख़िलाफ़
कर रहे थे षड्यन्त्र ।