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घोंसले क्या गिनें / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
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कौन जाने यहाँ
नाव किसकी कहाँ
यह नदी मौन है / रात भर जल बहे
टापुओं पर
पुरानी गुफाएँ कई
सो रहे दिन वहीँ
धूप है सुरमई
पीठ पर धार के तैरते अजदहे
चीखकर नींद में
लोग नंगे हुए
कह रहे -
घाट पर खूब दंगे हुए
खून से तर शहर / कौन इसमें रहे
जंगलों की हवा
गर्म है राख से
पत्तियाँ काँपतीं
हर तरफ हादसे
घोंसले क्या गिनें / पेड़ इतने बहे