भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घोघ सँ मुस्कै चान / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
परूकाँ बसन्तक मोन नहि पारू
सरिसों छल पीअर फुलाएल यौ।
चहुँ दिस धरती पर परती कतहु नहि
नयना छल दूनू जुड़ाएल यौ।
कोमल कुसुम छल पुलकित पलास
आमक मज्जर मे वास-सुवास
प्रीतक पलना मे ललना सुतल छल
भोरे मे कोइली जगाएल यौ।
पाकल गहूम सन रंग छल ओकर
मोती बनल छल बूटो आ‘ मटर
पाकल बिम्बाक फढ़ सन ओकर
ठोरो छल लाल ललाएल यौ।
हरियर खेसारीक चादरि बिछाओल
आड़ी पर साड़ी कें पछवा उड़ाओल
घोघे सँ मुस्कै चान बैरिनियाँ
विरहिणी कें किए सताएल यौ ?