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घोषणा / सुरेन्द्र रघुवंशी
Kavita Kosh से
वह महज़ एक घोषणा थी
उसके हाथ थे न पैर
इसलिए चलकर वहाँ तक नहीं पहुँची
जहाँ उसे पहुँचना था
वह मंच से घोषित कथन थे
जब मंच हटा दिया गया
उखाड़ दिया गया पण्डाल
तब ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता
कि किस स्थान से
घोषित थे वे कथन
वे आँधी की तरह आए थे
और अदृश्य तूफ़ान की तरह चले गए