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चंचल मयूर-चन्द्रिका भाल मेरे मानस-सर के मराल / प्रेम नारायण 'पंकिल'


चंचल मयूर-चन्द्रिका भाल मेरे मानस-सर के मराल।
अनुनय करते मेरे चरणों पर लोट गये थे नन्दलाल।
हे कृष्णचन्द्र! व्रजपति-किशोर! कालिन्दी-तट क्रीड़ाचारी।
हे कमलोपम पदचुम्बि विलम्बित मनमोहन मालाधारी।
हा-हा करती पछाड़ खा-खा कहती प्राणेश! श्याम सुन्दर।
तुम आये नहीं, घिरे अम्बर में उमड़-घुमड़ श्यामल जलधर
हो ‘पंकिल’-प्राण! कहाँ, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥131॥