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चंदा-सूरज-जुगनू-तारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों / ब्रह्मदेव शर्मा

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चंदा-सूरज-जुगनू-तारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों।
खत्म करें सारे अँधियारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

हमको साथ देखकर काली रात अमावस घबरा जाये।
कदम कदम फैलें उजियारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

मीठे जल की नदी सरीखी प्यास बुझाने की हो हसरत।
मन हों घने मृदुल जल धारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

फेंक रहे जो बीच दिलों के जादू-टोने-काले मंतर।
खत्म असर हों उनके सारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

ईंटों की पत्थर की बातें करना छोड़ें शीशमहल तो।
फूल उगायें न्यारे-न्यारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

अच्छी बातों के सायों में अपना जीवन रोज बितायें।
धवल चाँदनी रूप निखारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥

राहू और केतु के मिथ्या दंभ भरे बंधन हम तोड़ें।
मंगल-शुक्र-गुरु हों प्यारे मैं हूँ, तुम हो साथ सभी हों॥