भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंदा मामा, आ / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Kavita Kosh से
चंदा मामा, आ जाना, साथ मुझे कल ले जाना।
कल से मेरी छुट्टी है ना आये तो कुट्टी है।
चंदा मामा खाते लड्डू, आसमान की थाली में।
लेकिन वे पीते हैं पानी आकर मेरी प्याली में।
चंदा देता हमें चाँदनी, सूरज देता धूप।
मेरी अम्मा मुझे पिलातीं, बना टमाटर सूप।
थपकी दे-दे कर जब अम्मा, मुझे सुलाती रात में।
सो जाता चंदा मामा से, करता-करता बात मैं।