भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चंदा मामा का खेत / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चंदा मामा ने बोया है
आसमान में खेत
इधर-उधर जो तारे बिखरे
वे दाने हैं सेत

चरा रहे हैं चंदा मामा
आसमान में भेड़
नहीं, उगे हैं आसमान में
नन्हे-नन्हे पेड़

सुखा रहे हैं चंदा मामा
सारे घर की ज्वार
खड़े हुए हैं ठीक बीच में
सारी ज्वार पसार

चंदा मामा ले आए
चाँदी के रुपये ढेर
एक-एक कर आसमान में
सब हैं दिए बिखेर

बरसा है क्या ऊपर पानी
उठते हैं बड़बूल
चमक रहे हैं या गुलाब के
भूरे-भूरे फूल

चंदा मामा पापा जी हैं
तारे हैं संतान
चंदा मामा को तारों पर
है कितना अभिमान

चंदा मामा को पाकर के
खुश है सब आकाश
उसके बच्चे खेल रहे हैं
मिलकर उसके पास।