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चंदा मामा / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

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बचपन से ही चंद्रमा के प्रति मेरा अनुराग रहा है
इसकी शीतलता और शांति आकर्षित करती है मुझे
रोमांचित करती है मधुर धवल चाँदनी लुभावनी सुकुमारता।
मेरी प्यारी दादी मुझसेअक्सर कहा करती थी
मुझे याद है, जब मैं बहुत छोटा बच्चा था
मुझे प्रसन्न रखने के लिए

वो जो चंदा है आकाश में
वो तुम्हारे मामा हैं चंदा मामा !
वो सदा तुम्हारे साथ रहेंगें
कभी डरना नहीं
तुम अपने को कभी अकेला न समझना
मेरे बच्चे ! हो सकता है कि मैं बहुत दिनों तक
जीवित न रहुँ पर ये तुम्हारे साथ होंगे हमेशा।

मेरी दादीजी ने सत्य ही कहा था
अब वो इस दुनिया में नहीं हैं
पर यह चाँद मेरे साथ है
रोज रात मैं उनसे मिलता हूँ
मैं घंटों अपलक निहारता हूँ
मेरी दादीजी की अनमोल स्मृतियाँ जो जुड़ी हैं
मुझे अत्यंत आनंद और संतुष्टि मिलती है।
 
जब रातों में सब लोग सो जाते हैं
यह मेरे साथ जागता रहता है
सबकुछ भूलकर मैं उनकी गोद में आराम करता हूँ
मध्य रात्रि तक, वो मुझे सुंदर गीत सुनाते हैं
मैं मंत्रमुग्ध और बेसुध हो जाता हूँ
जब आँखें बोझिल होने लगती हैं
और मैं बड़ी मुश्किल से कहने का प्रयास करता हूँ-
मेरे प्यारे चंदा मामा, तुम कहीं चले न जाना
हमेशा मेरे साथ ही रहना
शायद ! मैं भी कल रहूँ या न रहूँ
मेरी प्यारी दादी की तरह
पर तुम सदैव रहना इसी तरह
मेरे जैसे बहुत से लोगों के लिए
तुम्हारी जरूरत होगी।