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चंदा मामा / मृदुला शुक्ला

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चंदा मामा चुप-चुप कैन्हें
ई रं बैठलोॅ, बोलोॅ नी,
खिड़की सें की झाँकी रहलौ
हमरोॅ संग में खेलोॅ नी!

जत्तेॅ मम्मी अच्छी छै;
ओत्तेॅ प्यारी-सच्ची छै;
मक्खन, बतासा, खीर, मिठाय,
जे चाहोॅ सब्भे मिलतौं;
आपनोॅ मुँह केॅ खोलोॅ नी।

दिन भर उँघतै रहै छौ हरदम
घूमौ रातोॅ में जी भरदम,
ई तेॅ अच्छा बात नै छेकै;
जागै वास्तें रात नै छेकै,
जगियोॅ भोरे-भोर सबेरे,
इखनी नींद में बोलोॅ नी।

मम्मी आस-पास जों आबै,
हरी-घुरी हमरा समझाबै
अच्छा बच्चा पाठ पढ़ै छै,
आगू रोजे-रोजे बढ़ै छै;
कैन्हें तोहें घटौ बढ़ी केॅ,
भेद जरा ई खोलोॅ नी।

खुशी लुटैलेॅ चारों ओर
ऐलै हमरोॅ घर पर भोर,
लोगो ऐलै कत्तेॅ सब;
ऐथौं तोरा खूब मजा
आबोॅ हमरोॅ टोलोॅ नी।

जन्म-दिवस पर अय्योॅ तोंय
फनू कभी नै जय्योॅ तोंय
देबौं तोरा खेल-खिलौना
तोरा तकिया सहित बिछौना,
आय रात के ई उत्सव में
कुच्छू मिसरी घोलोॅ नी!
चंदा मामा बोलोॅ नी!