भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चंदिया डोंगरी तीर / पीसी लाल यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारी के मड़वा म झूले रे तोरई,
चंदिया डोंगरी तीर फूले रे कोरई।

फिटकरी कस पखना फभे कहाँ जाबे दूरिहा।
गाँव के घुसरती घपटे हरियर घुटकुरिया॥

ददरिया के झोरई तेंदू पाना के टोरई।
चंदिया डोंगरी तीर फूले रे कोरई।

घिरघोली नंदिया म बिराजे सिध बावा।
धोवा चाउँर बेलपान धतुरा फूल चढ़ावा॥

मनउती नीक लागे दूनो हाथ के जोरई।
चंदिया डोंगरी तीर फूले रे कोरई॥

काम-बुता के मारे कहाँ जाबे गाँव-गोढ़ा?
इही तीरथ धाम चढ़ा नरियर जोड़ा-जोड़ा॥

कोड़का मंगीकटा अउ कुटेली साल्हे बोरई
चंदिया डोंगरी तीर फूले रे कोरई।

माटी म उपजन-बाढ़न अउ माटी म मिलना
मनखे के जिनगी जस, कथरी के खिलना।

माथ के पछीना म माटी चंदन घोरई।
चंदिया डोंगरी तीर फूले रे कोई॥