भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंद आदिम रूप / विजयशंकर चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
बाढ़ में फंसने पर
वैसे ही बिदकते हैं पशु
जैसे ईसा से करोड़ साल पहले ।
ठीक वैसे ही चौकन्ना होता है हिरन
शेर की आहट पाकर
जैसे होता था हिरन बनने के दिनों में ।
गज और ग्राह का युद्ध
होता है उसी आदिम रूप में ।
जैसे आज भी काट खाता है दाँतों से
नखों से फाड़ देता है मनुष्य शत्रु को
निहत्था होने पर ।