भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंद घरानों ने मिल जुलकर / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
चंद घरानों ने मिल जुलकर
कितने घरों का हक़ छीना है
बाहर की मिट्टी के बदले
घर का सोना बेच दिया है
सबका बोझ उठाने वाले
तू इस दुनिया में तन्हा है
मैली चादर ओढ़ने वाले
तेरे पांव तले सोना है
गहरी नींद से जागो 'नासिर'
वो देखो सूरज निकला है।